सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड (SGBs) क्या हैं?
सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड (Sovereign Gold Bond) भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा भारत सरकार की ओर से जारी किए जाते हैं। यह एक डिजिटल निवेश साधन है, जो सोने की कीमतों से जुड़ा होता है। इसमें निवेशक को फिजिकल गोल्ड रखने की आवश्यकता नहीं होती, बल्कि बॉन्ड के रूप में निवेश किया जाता है।
SGBs की अवधि 8 वर्ष होती है, जिसमें 5 वर्ष की लॉक-इन अवधि शामिल है। निवेशकों को हर साल 2.5% का निश्चित ब्याज मिलता है, साथ ही सोने की कीमत में वृद्धि का लाभ भी प्राप्त होता है। परिपक्वता (Maturity) पर मिलने वाला रिटर्न बाजार मूल्य के आधार पर होता है।
फिजिकल गोल्ड का महत्व
फिजिकल गोल्ड (Physical Gold), जैसे सोने के सिक्के, बार या आभूषण, भारत में निवेश और सांस्कृतिक उपयोग दोनों के लिए लोकप्रिय है। शादी, त्योहार और अन्य अवसरों पर इसकी मांग बढ़ जाती है। निवेशक इसे आसानी से खरीद सकते हैं और आवश्यकता पड़ने पर तुरंत बेच भी सकते हैं। हालांकि, इसे सुरक्षित रखने के लिए लॉकर या अन्य व्यवस्थाओं की आवश्यकता होती है, जो अतिरिक्त खर्च का कारण बनता है।
दोनों में प्रमुख अंतर
सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड और फिजिकल गोल्ड के बीच कई महत्वपूर्ण अंतर हैं, जो निवेशकों के लिए निर्णय लेने में सहायक हो सकते हैं।
सुरक्षा (Security):
SGBs डिजिटल रूप में डिमैट अकाउंट या बॉन्ड सर्टिफिकेट के रूप में सुरक्षित रहते हैं, जिससे चोरी या नुकसान का कोई जोखिम नहीं होता। वहीं, फिजिकल गोल्ड को घर या बैंक लॉकर में रखने की आवश्यकता होती है, जिसके लिए सुरक्षा और रखरखाव का खर्च उठाना पड़ता है।
रिटर्न (Return):
SGBs निवेशकों को दोहरे लाभ प्रदान करते हैं: सोने की कीमत में वृद्धि का फायदा और 2.5% का वार्षिक ब्याज। इसके विपरीत, फिजिकल गोल्ड का रिटर्न केवल सोने की कीमत में बढ़ोतरी पर निर्भर करता है। उदाहरण के लिए, यदि 2016 में ₹1 लाख का निवेश SGBs में किया गया होता, तो 2024 तक यह लगभग ₹2.4 लाख (ब्याज सहित) हो सकता था, जबकि फिजिकल गोल्ड में समान निवेश का मूल्य लगभग ₹2.2 लाख होता।
लिक्विडिटी (Liquidity):
फिजिकल गोल्ड को तुरंत बेचकर नकदी प्राप्त की जा सकती है, जो इसे अल्पकालिक जरूरतों के लिए उपयुक्त बनाता है। दूसरी ओर, SGBs की लॉक-इन अवधि 5 वर्ष है, हालांकि इसे स्टॉक एक्सचेंज पर पहले भी ट्रेड किया जा सकता है। फिर भी, इसकी लिक्विडिटी फिजिकल गोल्ड की तुलना में कम हो सकती है।
टैक्स लाभ (Tax benefit):
SGBs की परिपक्वता पर मिलने वाला कैपिटल गेन टैक्स-मुक्त होता है, जो इसे लंबी अवधि के निवेश के लिए आकर्षक बनाता है। इसके विपरीत, फिजिकल गोल्ड बेचने पर कैपिटल गेन टैक्स लागू होता है, जो रिटर्न को प्रभावित कर सकता है।
अतिरिक्त लागत (Additional Costs):
फिजिकल गोल्ड, खासकर आभूषण, खरीदने पर मेकिंग चार्ज और GST जैसे अतिरिक्त खर्च जुड़ते हैं। SGBs में ऐसी कोई लागत नहीं होती, जिससे यह लागत प्रभावी विकल्प बनता है।
निवेशकों की बदलती प्राथमिकताएँ
हाल के वर्षों में SGBs की लोकप्रियता बढ़ी है। इसका कारण सरकार और RBI का समर्थन, डिजिटल स्वरूप में सुविधा, और टैक्स छूट जैसे लाभ हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि SGBs लंबी अवधि के निवेशकों के लिए अधिक लाभकारी हैं, क्योंकि यह न केवल सोने की कीमतों में वृद्धि का लाभ देता है, बल्कि अतिरिक्त ब्याज भी प्रदान करता है।
दूसरी ओर, फिजिकल गोल्ड का सांस्कृतिक महत्व और तुरंत बिक्री की सुविधा इसे उन निवेशकों के लिए उपयुक्त बनाती है, जो परंपरा और त्वरित नकदी की आवश्यकता को प्राथमिकता देते हैं।
रिटर्न का विश्लेषण
सितंबर 2025 तक, भारत के प्रमुख शहरों में 24 कैरेट सोने की औसत कीमत लगभग ₹10,300 प्रति ग्राम रही। पिछले एक दशक में SGBs ने औसतन 240% से अधिक रिटर्न दिया है, जिसमें ब्याज और कीमत वृद्धि दोनों शामिल हैं।
दूसरी ओर, फिजिकल गोल्ड का रिटर्न लगभग 200% रहा, क्योंकि इसमें कोई अतिरिक्त ब्याज नहीं मिलता। मेकिंग चार्ज और टैक्स जैसे खर्चों के कारण फिजिकल गोल्ड का वास्तविक रिटर्न और कम हो सकता है।
अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य
वैश्विक स्तर पर सोना हमेशा से सुरक्षित निवेश और मुद्रास्फीति (Inflation) से बचाव का साधन रहा है। भारत में SGBs ने इस पारंपरिक निवेश को आधुनिक और डिजिटल स्वरूप प्रदान किया है। विश्व बाजार में सोने की कीमतों में उतार-चढ़ाव के बावजूद, SGBs का ढांचा निवेशकों को स्थिरता और अतिरिक्त आय का अवसर देता है।
विशेषज्ञों का मत
वित्तीय विशेषज्ञों के अनुसार, यदि निवेश का लक्ष्य त्वरित नकदी या सांस्कृतिक उपयोग है, तो फिजिकल गोल्ड उपयुक्त है। हालांकि, लंबी अवधि के लिए SGBs बेहतर विकल्प हैं, क्योंकि इनमें सुरक्षा, टैक्स छूट और ब्याज जैसे लाभ शामिल हैं। विशेषज्ञ यह भी सुझाते हैं कि निवेशकों को अपने पोर्टफोलियो में दोनों विकल्पों का संतुलन बनाना चाहिए।
निष्कर्ष
भारत में सोने का निवेश न केवल वित्तीय सुरक्षा प्रदान करता है, बल्कि सांस्कृतिक महत्व भी रखता है। सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड और फिजिकल गोल्ड दोनों ही निवेशकों के लिए आकर्षक विकल्प हैं, लेकिन उनकी विशेषताएँ अलग-अलग जरूरतों को पूरा करती हैं।
SGBs लंबी अवधि के निवेश, टैक्स बचत और सुरक्षा के लिए बेहतर हैं, जबकि फिजिकल गोल्ड त्वरित लिक्विडिटी और परंपरागत उपयोग के लिए उपयुक्त है। निवेशकों को अपनी वित्तीय जरूरतों और लक्ष्यों के आधार पर सही विकल्प चुनना चाहिए।
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